शनिवार, 14 जून 2008

मेरे आलेख पर प्रतिक्रिया-11

छत्तीसगढ़ी भाषा का चरम विकास लक्ष्य हो
जे.आर.सोनी

इन दिनों राज्य के एक समाचार पत्र में नंदकिशोर शुक्ल द्वारा लिखित आलेख की चर्चा और आलोचना का बाजार गर्म है। श्री शुक्ल ने अपने इस आलेख में राज्य के दो करोड़ लोगों की आत्मनिर्भरता और समोन्नति को ध्यान में रखकर नवोदित राज्य की हित रक्षा के लिए मातृभाषा को विशेष रूप से रेखांकित किया था। चूंकि राज्य में छत्तीसगढ़िया शांत, मूक, सहनशील और पिछड़े रहे हैं और उनके सिर पर और कोई ददा-दाई की छत्रछाया नहीं है। शुक्ल जी ने इन्हीं का संज्ञान लेते हुए राज्य की मातृभाषा के विकास पर अपना पक्ष रखा था। श्री संजय द्विवेदी और श्री महेशचंद्र शर्मा के आलेख लेखन कला से चमत्कृत करने वाले अपराजेय, बहुस्वीकृत और यथार्थवादी भले ही प्रतीत हो रहे हों किन्तु छत्तीसगढ़ की अतृप्त माटी की सौंधी गंध जो शुक्ल ने देनी चाही, वह कहां? छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा राज्य सरकार और आम जनता द्वारा पूर्णरूपेण प्रयुक्त हो, यही मुख्य आलेख का लक्ष्य था और होना भी चाहिए। रोड़ा अटकाने वाले ही नहीं समर्थन करने वाले भी जानते हैं कि पाठयक्रम में अंग्रेजी का वर्चस्व है। संस्कृत, हिंदी या मातृभाषा का दर्जा पूरे देश में साठ वर्ष होने के बाद भी अंग्रजी दां राजनेताओं को मान्य नहीं हुआ। विरोध अंग्रेजी का होना चाहिए। जाहिर है सब भाषाओं की जननी संस्कृत हम सब जनों की नानी-दादी है तो हिंदी, अंग्रेजी माता-विमाता। भाषाओं के इस परिवार में छत्तीसगढ़ी भाषा स्वमाता है। भाषा पर विवाद ठीक नहीं। उनकी दृष्टि का केंद्र बिंदु छत्तीसगढ़ की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी भाषा का चरम और मुक्त विकास है। संस्कृत भाषा और विकास से द्रोह नहीं।
लेखक, पूर्व प्राचार्य हैं

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