रविवार, 25 अगस्त 2013

इतनी बेरहम कैसे हो गयी ये मुंबई मेरी जान ?



          अगर मुंबई में भी महफूज नहीं तो कहां जाएं लड़कियां?
                           -संजय द्विवेदी
  मुंबई जो कभी मेरा शहर रहा है। इस शहर में जीवन के तीन बेहद खुशनुमा, बिंदास, दोस्ताना, बेधड़क और जिंदादिल साल मैंने गुजारे हैं।सपने देखे हैं, उनकी तरफ दौड़ लगाई है। अखबारों और वेबसाइट्स की नौकरियां करते हुए इन सालों में कभी नहीं लगा कि मुंबई किसी औरत के लिए इतनी खतरनाक हो सकती है। मुंबई की एक महिला पत्रकार के हुयी सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे हिलाकर रख दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई इस देश की सामूहिक आकांक्षाओं, सामूहिक सपनों का प्रतिनिधि शहर है।
    बीते दिनों की सोचता हूं तो देर रात अखबार के दफ्तर से लौटते वक्त, बहुत कम पर कई बार अलसुबह भी किसी खास काम से निकले तो भी देखा कि औरतों के लिए यह शहर हमेशा ही सुरक्षित और सम्मान देने वाला रहा है। औरतों के खिलाफ होने वाले अत्याचार निजी जीवन में होंगें पर इस तरह हिला देने वाली सामूहिक दुराचार की घटनाएं कम सुनी थीं। इस शहर में रहते हुए मुझे कभी नहीं लगा कि एक लड़की को यहां कोई खतरा हो सकता है। लड़कियां और महिलाएं पुरूषों की तरह ही कभी और किसी भी समय मुझे आती-जाती दिख जाती हैं। कई बार जब अन्य महानगरों की कार्य स्थितियों की तुलना होती है तो मुंबई तमाम मामलों में अन्य शहरों से बेहतर नजर आती है। बेतरह भीड़ के बावजूद एक अनुशासन, एक साथ रहना और अपने सपनों के लिए जीना- यह शहर आपको जरूर सिखाता है। इस शहर के किनारों पर विशाल जलराशि से भरे लहराते समुद्र हममें अपनी ही तरह विशाल होने का साहस भी भरते हैं। उनकी उठती- गिरती लहरें हमें जीवन के उतार-चढ़ाव का भान कराती हैं।
   लेकिन क्या समय बदल गया है या मुंबई भी अब शेष शहरों की तरह एक भीड़ भरी अराजक नगरी में बदल रही है? इसका कास्मो चरित्र कुछ ढीला पड़ रहा है? एक स्त्री के साथ ऐसी अमानवीय बर्बरता सभ्य समाज में कहीं से शोभा नहीं देतीं। दिल्ली-मुंबई जैसे शहर जो हमारे देश के बड़े शहर तो हैं ही हमारे देश का अंतरराष्ट्रीय चेहरा भी हैं। दिल्ली और मुंबई में ऐसी घटनाएं हमें बताती हैं कि कानून का राज ढीला पड़ा है और अपराधियों में अब भय नहीं रहा। मीडिया रिर्पोट्स ही बताती हैं कि मुंबई का आधा पुलिस बल वीआईपी ड्यूटी में लगा है। ऐसे में जनता को किसके हाल पर छोड़ दिया गया है।
   मुंबई शहर जो देश की भर की युवा प्रतिभाओं, लड़के-लड़कियों को इस लिए आकर्षित करता है कि यहां आकर आकर वे अपनी प्रतिभा आजमा सकते हैं और अपने सपनों में रंग भर सकते हैं। आखिर इस शहर को हुआ क्या है कि अपने कर्तव्य को अंजाम देती एक लड़की के रास्ते में वहशी दरिंदे आ जाते हैं। मैं जिस मुंबई को जानता हूं वह प्रतिभाओं को आदर देने वाली, आदमी की काबलियत और उसके हुनर की कद्र करने वाली है। ये देश का वो शहर है जहां आम आदमी के सपने सच होते हैं। भारत के छोटे शहरों-गावों में देखे गए सपने, आकांक्षाओं को आकाश देने वाले इस शहर का दिल आखिर इतना छोटा कैसे हो गया, उसका कलेजा इतना कड़ा कैसे हो गया कि एक लड़की की चीख और उसका आर्तनाद अब इसे विकल नहीं करता? यह वो शहर है जो जिंदगी, जोश और जज्बे को सलाम करता है। यह कभी न रूकने वाली, कभी न ठहरने वाली मुंबई अचानक इतनी संवेदनहीन कैसे हो सकती है? सही मायने में इस घटना ने एक बदलती हुयी मुंबई की तस्वीर पेश की है। जो बर्बर है, और हिंसक भी। वह हिंसा भी औरत के खिलाफ। एक महिला पत्रकार के खिलाफ हुयी यह घटना अब सबक बनना चाहिए कि यह कतई दुहराई न जाए। यह जिम्मेदारी हर मुंबईकर की है और समाज को चलाने वाले लोगों की भी है। आरोपियों को कड़ी सजा के साथ-साथ हमें औरत के प्रति, बच्चियों के प्रति सम्मान जगाने, उनकी सुरक्षा को पुख्ता करने के इंतजाम करने होंगें। हमें सोचना होगा कि मुंबई जैसे शहर में भी अगर लड़कियां सुरक्षित नहीं तो आखिरकार वे कहां जाएं। मुंबई का कास्मो चरित्र, यहां की पुलिस और शेष समाज मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाते हैं जहां औरत के लिए जगह भी है और सम्मान भी। किंतु क्या कुछ सिरफिरे और मनोविकारी लोग इस शहर का यह चरित्र हर लेंगें? इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। मुंबई की जीवन शैली और उसमें छलकता हुआ जीवन इसकी एक खास पहचान है। अगर इस शहर ने औरतों को असुरक्षित बनाने, उनकी आजादी और अवसर छीनने की कोशिशें कीं तो मुंबई, मुंबई नहीं रह जाएगी। इसलिए मुंबई के लोगों का यह दायित्व है कि वे जागरूक नागरिकता का परिचय देते हुए अपने शहर की इस खास पहचान को नष्ट न होने दें।
     मुंबई पुलिस, प्रशासन और शेष समाज की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सपनों में रंग भरने वाले इस शहर का सिर नीचा न होने दें। मुंबई एक सभ्यता का नाम है, एक संस्कृति का नाम है, एक अवसर का नाम है, वह सपनों की एक ऐसी दुनिया है जिसमें हर कोई आकर अपने झंडे गाड़ना चाहता है, व्यापार, फिल्म, फैशन, शेयर, साहित्य, रंगमंच, कला, मीडिया, प्रदर्शन कलाओं से लेकर किसी विधा का भी आदमी आकर एक बार इस शहर पर छा जाना चाहता है। अगर यह मुंबई का नया बनता वहशी चेहरा हमने ठीक न किया तो यह तमाम कलाओं के साथ बड़ा अपराध होगा। औरतों से ही दुनिया संपूर्ण और खूबसूरत होती है। इन तमाम विधाओं में आ रही औरतों डरकर या शहर में असुरक्षाबोध के साथ काम करेगीं तो मुंबई अपनी पहचान खो देगी।
  इस घटना पर जिस तरह सभी समाजों, कलाकारों, राजनीतिक दलों ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए प्रतिक्रिया दी है उसे सराहा जाना चाहिए। मुंबई पुलिस ने भी अपनी तत्परता का परिचय दिया है। आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की तरफ हमें बढ़ना चाहिए और उससे जरूरी यह है कि हम अपनी मुंबई को दोबारा शर्मशार न होने दें, ऐसा संकल्प लें। तभी देशवासी गर्व से कह सकेंगें ये मुंबई है मेरी जान!’