बुधवार, 11 जून 2014

ह्रदयनारायण दीक्षितः प्रखर राष्ट्रवादी स्वर

                                     


                                        - संजय द्विवेदी

वे हिंदी पत्रकारिता में राष्ट्रवाद का सबसे प्रखर स्वर हैं। दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा समेत देश के अनेक प्रमुख अखबारों में उनकी पहचान एक प्रख्यात स्तंभलेखक की है। राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर चल रही उनकी कलम के मुरीद आज हर जगह मिल जाएंगें। उप्र के उन्नाव जिले में जन्में श्री ह्दयनारायण दीक्षित मूलतः एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। उनका सार्वजनिक जीवन और पत्रकारिता एक दूसरे ऐसे घुले-मिले हैं कि अंदाजा ही नहीं लगता कि उनका मूल काम क्या है। उनका सार्वजनिक जीवन उन्नाव जिले की सामाजिक समस्याओं, जनसमस्याओं से जूझते हुए प्रारंभ हुआ। वे अपने जिले में पुलिस अत्याचार, प्रशासनिक अन्याय लेकर लगातार आंदोलनरत रहे। इसी ने उन्हें राज्य की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बना दिया। जनता के प्रति यही संवेदनशीलता उनके पत्रकारीय लेखन में भी झांकती है।

    सन् 1972 में जिला परिषद, उन्नाव के सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक जीवन प्रारंभ करने वाले श्री दीक्षित आपातकाल के दिनों में 19 महीने जेल में भी रहे। उप्र की विधानसभा में लगातार चार बार चुनाव जीतकर पहुंचे। राज्यसरकार में पंचायती राज और संसदीय कार्यमंत्री भी रहे। इन दिनों विधानपरिषद के सदस्य और भाजपा की उप्र इकाई में उपाध्यक्ष हैं। उनके पत्रकारीय जीवन पर एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। 1978 में उन्होंने कालचिंतन नाम से एक पत्रिका निकाली। जिसे  2004 तक चलाया। इसके साथ ही राष्ट्रवादी विचारधारा के अखबारों-पत्रिकाओं पांचजन्य और राष्ट्रधर्म में लिखने का सिलसिला शुरू हुआ। आज तो वे देश के सबसे बड़े हिंदी अखबार दैनिक जागरण के नियमित स्तंभलेखक हैं। अब तक उनके चार हजार से अधिक लेख अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं। राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखक होने के नाते उनके सामने तमाम ऐसे सवाल जो मुख्यधारा की मीडिया को असहज लगते हैं उनपर भी उन्होंने खूब लिखा। उन्होंने उस दौर में राष्ट्रवादी पत्रकारिता का झंडा उठाया, जब इस विचार को मुख्यधारा की पत्रकारिता में बहुत ज्यादा स्वीकृति नहीं थी। दीनदयाल उपाध्याय पर लिखी गयी उनकी किताब-भारत के वैभव का दीनदयाल मार्गतथा दीनदयाल उपाध्यायः दर्शन, अर्थनीति और राजनीति खासी चर्चा में रही। इसके अलावा भगवदगीता पर भी उनकी एक किताब को सराहा गया। उनकी किताबसांस्कृतिक राष्ट्रदर्शन भारतीय राष्ट्रवाद के मूलस्रोत,विकास, राष्ट्रभाव और राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्वों का विवेचन करती है। अब तक दो दर्जन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति और उसकी समाजोपयोगी भूमिका का ही आपने रेखांकन किया है। संसदीय परंपराओं और राजनीतिक तौर-तरीकों पर उनका लेखन लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती देने वाला है। एक लोकप्रिय स्तंभकार के नाते मध्य प्रदेश सरकार ने उनके पत्रकारीय योगदान को देखते हुए उन्हें गणेशशंकर विद्यार्थी सम्मान से अलंकृत किया। इसके अलावा राष्ट्रधर्म पत्रिका की ओर से भी उनको भानुप्रताप शुक्ल पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।  

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